Sanskrit shlok Arth

Monday, August 30, 2021

संस्कृत सुभाषित


 *उद्यमो मित्रवद् ग्राह्य: प्रमादं शत्रुवत्त्यजेत्।*

*उद्यमेन परा सिध्दि: प्रमादेन क्षयो भवेत्॥*


अर्थात - उद्योग को मित्र की तरह ग्रहण करना चाहिए। प्रमाद को शत्रु की तरह त्यागना चाहिए। उद्यम से परम सिध्दि मिलती है तथा प्रमाद से क्षय होता है।


*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*


*प्रथमेनार्जिता विद्या, द्वितीयेनार्जितं धनम्।*

*तृतीयेनार्जिता कीर्तिः, चतुर्थे किं करिष्यति।।*


अर्थात - जिसने प्रथम अर्थात ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, द्वितीय अर्थात गृहस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं किया, तृतीय अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में कीर्ति अर्जित नहीं की, वह चतुर्थ अर्थात संन्यास आश्रम में क्या करेगा?


*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*


ईर्ष्या घृणी न सन्तुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कितः। 

परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुःखिताः ॥

भावार्थ :- ईर्ष्यालु, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा संदेह करने वाला तथा दूसरों के भाग्य पर जीवन यापन करने वाला- ये छः प्रकार के लोग संसार में - सदा दुःखी रहते हैं । अतः इन दुर्गुणों से बचने का प्रयास करना चाहिए ।


संध्यायां न स्वपेद् राजन् विद्यां न च समाचरेत्।

न भुंजित च मेधावी तदायुर्विन्दते महत्।।

अर्थात - बुद्धिमान मनुष्य को संध्या के समय न तो सोना चाहिए, न अध्ययन करना चाहिए और न ही भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से दीर्घायु प्राप्त होती है।


मङ्गलं सुप्रभातम्



प्राप्यापदं न व्यथते कदाचित उद्योगमन्विच्छति चाप्रमत्तः ।

 दुःखं च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः सप्तनाः ॥

भावार्थ :- जो व्यक्ति विपत्ति के समय भी कभी विचलित नहीं होता, अपितु सावधानी से अपने काम में लगा रहता है, विपरीत समय में दुःखों को हँसते-हँसते सह जाता है, उसके सामने शत्रु टिक ही नहीं सकते; वे तूफान में तिनकों के समान उड़कर बिखर जाते हैं ।

मङ्गलं सुप्रभातम्

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संस्कृत श्लोक

धनतेरस की शुभकामनाएं

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