बोधश्च त्वा प्रतिबोधश्च रक्षताम्
अस्वप्नश्च त्वानवद्राणश्च रक्षताम्।
गोपायंश्च त्वा जागृविश्च रक्षताम्॥
अर्थात - ज्ञान-विज्ञान, जागरण, संघर्ष, जाग्रत रहना आदि आपकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आवश्यकता केवल इस बात की रहती है कि जिस व्यक्ति ने ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसे इस ज्ञान को व्यवहार में लाकर उसका परीक्षण करना चाहिए और अपने साथ-साथ समाज की रक्षा करनी चाहिए।
मङ्गलं सुप्रभातम्
No comments:
Post a Comment