कामधेनुगुना विद्या ह्यकाले फलदायिनी।
प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥
Transliteration: kāmadhenugunā vidyā hyakāle phaladāyinī।
pravāse mātṛsadṛśī vidyā guptaṃ dhanaṃ smṛtam॥
English Translation: Learning is like a cow of desire. It, like her, yields in all seasons. Like a mother, it feeds you on your journey. therefore learning is a hidden treasure.
Hindi Translation: विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है. वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है. इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है.
अद्यतनसुभाषितम्
शत्रुश्चैव हि मित्रं च न लेख्यं न च मातृका ।
यो वै सन्तापयति यं स शत्रुः प्रोच्यते नृप ॥
भावार्थः- यह शत्रु है और यह मित्र, इस का कोई लेखा-जोखा नहीं है और न ही शत्रु व मित्र सूचक कोई अक्षर है। जो जिसको संताप देता है वहीं उसका शत्रु कहा जाता है ।
*दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले।*
*श्रेष्ठानि कन्यागोभूमि-विद्यादानानि सर्वदा॥*
अर्थात्- सभी दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान और विद्यादान इस भूमि पर सर्वश्रेष्ठ है।
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अद्यतनसुभाषितम्
सुखं वा यदि वा दुःखं भूतानां पर्युपस्थितम् ।
प्राप्तव्यमवशैः सर्वं परिहारो न विद्यते।।
भावार्थः - प्राणियों के समक्ष जो सुख या दुःख उपस्थित होता है, वो सब उन्हें विवश होकर सहना ही पड़ता है, क्योंकि उसके टालने का कोई उपाय नहीं है अतः धैर्यपूर्वक उसका सामना करना चाहिए।
महाभारतम् शान्तिपर्व २८-१६
आढ्यम्भविष्णुरखिले भुवने मनुष्यो
यामाप्य सम्भवति वै सुभगम्भविष्णुः।
वात्सल्यमूर्तिरतुला जननीश्वरस्य
तत्पादकञ्जसदने रमतान्मनो मे।।
जिस को पाकर के सम्पूर्ण जगतमें मनुष्य निर्धन होते हुए भी धनवान हो जाता हैं, सौभाग्यशाली न होते हुए भी भाग्यवान हो जाता हैं, जो ईश्वर कि साक्षात् अतुल्य प्रेम की मूर्ती है वैसी जननी, उसके चरणकमलरूपी सदनमें मेरा मन हमेशा खेलता रहें ।
*आरोग्यमानृण्यमविप्रवासः सद्भिर्मनुष्यैस्सहसंप्रयोगः।*
*स्वप्रत्यया वृत्तिरभीतवासः षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन्॥*
अर्थात - स्वस्थ रहना, अनृण रहना, परदेश में न रहना, सज्जनों के साथ मेल-जोल, स्वव्यवसाय द्वारा आजीविका चलाना तथा भययुक्त जीवन-यापन - ये छह बातें सांसारिक सुख प्रदान करती हैं।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
*एतान्यनिगृहीतानि व्यापादयितुमप्यलम्।*
*अविधेया इवादान्ता हयाः पथि कुसारथिम्॥*
अर्थात - जैसे बेकाबू और अप्रशिक्षित घोड़े मूर्ख सारथी को मार्ग में ही गिराकर मार डालते हैं ; वैसे ही यदि इंद्रियों को वश में न किया जाए तो ये मनुष्य के शत्रु बन जाती हैं।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
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