Sanskrit shlok Arth

Wednesday, June 16, 2021

वनेऽपि सिंहा मृगमांसभक्ष्याः बुभुक्षिता नैव तृणं चरन्ति श्लोक का अर्थ

 


वनेऽपि सिंहा मृगमांसभक्ष्याः बुभुक्षिता नैव तृणं चरन्ति।

एवं कुलीना व्यसनाभिभूताः न नीतिमार्गं परिलङ्घयन्ति॥


अर्थात् जैसे वन में पशुओं के मांस को खाने वाले शेर भुख लगने पर भी घास नहीं खाते वैसे ही कुलीन व्यक्ति विपत्ति से परेशान होकर भी नैतिक पथ का उल्लङ्घन नहीं करते हैं अर्थात् उचितानुचित के विचार का त्याग नहीं करते।

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संस्कृत श्लोक

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