न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ कठोपनिषद १/२/१८
''इस 'प्रज्ञामय' का न जन्म होता है न मरण; न यह कहीं से आया है, न यह कोई व्यक्ति-विशेष है; यह अज है, नित्य है, शाश्वत है, पुराण है, शरीर का हनन होने पर इसका हनन नहीं होता।
No comments:
Post a Comment