*रथः शरीरं पुरुषस्य राजन्-*
*आत्मा नियन्तेन्द्रियाण्यस्य चाश्वा:।*
*तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वै:*
*दान्तैः सुखं याति रथीव धीरः॥*
अर्थात - यह मानव शरीर रथ है, आत्मा (बुद्धि) इसका सारथी है, इंद्रियाँ इसके घोड़े हैं। जो व्यक्ति सावधानी, चतुराई और बुद्धिमानी से इनको वश में रखता है वह श्रेष्ठ रथवान की भांति संसार में सुखपूर्वक यात्रा करता है।
*🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*
कादम्बरीरसमदो न तथा विजातः
कान्तास्यलोकनपरं हि यथा प्रजातः।
वामाधरो रसमदस्य समुद्र एव
कादम्बिनी भवति नेत्रयुगं नु मन्ये।।
जितना नशा शराब पीने से नहीं हुआ उतना तो सिर्फ प्रिया का मुख देखकर हो गया, मैं मानता हूं कि उस के अधरोष्ठ मद का सागर हैं और उस के नैन मद के बादल ।
अद्यतनसुभाषितम्
प्राणत्राणोऽनृतं वाच्यम् आत्मनो वा परस्प च ।
गुर्वर्थे स्त्रीषु चैव स्याद् विवाहकरणेषु च ।।
अर्थ - अपने या दूसरे के प्राण बचाने के लिए, गुरु के लिए, एकान्त में अपनी स्त्री के पास विनोद करते समय अथवा विवाह के प्रसङ्ग में झूठ बोल दिया जाय तो पाप नहीं लगता है।
महाभारतम् शान्तिपर्व ३४-२५
मुर्खस्य पंचचिह्नानि, गर्वो दुर्वचनं तथा ।
हठी चैव विषादि च, परोक्तं नैव मन्यते ।।
अर्थ:- मूर्खो के पाँच लक्षण हैं:- १ मूर्ख आदमी अभिमानी होता है। २ दुर्वचन बोलता है। ३ हठी जिद्दी होता है।४ विषाद करने वाला होता है । ५ दूसरे के हितकारी वचनों को नहीं मानता है।
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