Sanskrit shlok Arth

Sunday, March 7, 2021

समास की परिभाषा व भेद

 



                                समास की परिभाषा -

समास वह शब्द रचना विधि है जिसमे अर्थ की दृष्टि से भिन्नता रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते है

सरल शब्दों में कहें तो संक्षेप करना  समास कहलाता है|

समास रचना में भाग लेने वाले पहले शब्द या पद को पूर्वपद और दूसरे शब्द को उत्तरपद कहा जाता है पूर्वपद एवं उत्तरपद के योग से बनने वाले नए शब्द को ‘समस्तपद’ कहा जाता है; जैसे-

पूर्वपद  उत्तरपद    = समस्तपद           पूर्वपद     उत्तरपद           = समस्तपद

राजा  + पुत्र       = राजपूत्र             प्रति  +    दिन             = प्रतिदिन

जन्म + अंधे       = जन्मांध             स्नान +     गृह            = स्नानगृह

समास- विग्रह-

समस्तपद के सभी पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया ‘समास-विग्रह’ कहीं जाती है; जैसे-

समस्तपद       समास-विग्रह                      समस्तपद            समास-विग्रह

यशप्राप्त   =     यश को प्राप्त                    अकालपीड़ित  =      अकाल से पीड़ित

दाल-चावल =     दाल और चावल                   देशवासी      =     देश का वासी

समास के भेद-

समास के छ: भेद होते है |

  1. अव्ययीभाव समास
  2. बहुब्रीहि समास
  3. द्वंद्व समास
  4. द्विगु समास
  5. तत्पुरुष समास
  6. कर्मधारय समास

अव्ययीभाव समास - जिस समास का पहला पद कोई अव्यय (अविकारी शब्द) होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे- ‘यथासमय’ पद यथा और समय के योग से बना है इसका पूर्व पद ‘यथा’ एक अव्यय है और इसका विग्रह होगा- ‘समय के अनुसार’ आइए कुछ और अन्य उदाहरण देखते हैं-

समस्तपद 

अव्यय

विग्रह

समस्तपद 

अव्यय

विग्रह

यथाशक्ति

यथा

शक्ति के अनुसार

भरपूर

भर

पूरा भरा हुआ है

आमरण

मरण तक

बेमिसाल

बे

जिसकी मिसाल न हो

प्रतिदिन

प्रति

प्रत्येक दिन / हर दिन

प्रत्येक

प्रति

एक – एक

हरघड़ी

हर

घड़ी – घड़ी

बाअदब

बा

अदब के साथ


बहुव्रीहि समास - बहुव्रीहि समास के दोनों पद गौण  होते हैं तथा कोई अन्य पद की प्रधानता होती है वस्तुतः बहुव्रीहि समास के दोनों पद परस्पर मिलकर किसी तीसरे पद के बारे में कुछ कहते हैं और यहां तीसरा पद ही प्रधान होता है। आइए कुछ और उदाहरण देखते हैं-

समस्तपद

विग्रह

प्रधान पद

षडानन

षट (छह) हैं आनन (मुख) जिसके

कार्तिकेय

चक्रधर

चक्र धारण किया है जिसने

विष्णु

गजानन

गज के समान आनन (मुख) है जिसका

गणेश

घनश्याम

घन के समान श्याम (काले) है जो

कृष्ण

त्रिलोचन

तीन है लोचन (नेत्र) जिसके

शिव

मेघनाद

मेघ के समान करता है नाद आवाज जो

रावण पुत्र इंद्रजीत

विषधर

विश को धारण करने वाले

शिव


द्वंद्व समास- द्वंद्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं अर्थात कोई पद गौण नहीं होता समस्त पद बनाते समय दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोधक अव्यय- और, तथा, या आदि को हटाकर और उनके स्थान पर योजक-चिह्न (-) लगा दिया जाता है; जैसे- चाय या कॉफी के स्थान पर चाय-कॉफी| अन्य उदाहरण देख लेते हैं-

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

माता-पिता

माता और पिता

हार जीत

हार या जीत

नदी-नाले

नदी और नाले

राधा-कृष्ण

राधा और कृष्ण

बाप-दादा

बाप और दादा

पाप-पुण्य

पाप तथा  पुण्य

छोटा-बड़ा

छोटा और बड़ा

अन्न–जल

अन्न और जल

 

द्विगु समास- जिस समास का पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है तथा समस्तपद किसी समूह या फिर किसी समाहार का बोध करता है तो वह द्विगु समास कहलाता है।

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

चौराहा

चार रास्तों का समाहार

शताब्दी

सौ सालों का समूह

पंचतत्व

पांच तत्वों का समूह

त्रिवेणी

तीन नदियों का समाहार

दोपहर

दो पहरों का समाहार

पंचतंत्र

पांच तंत्रों का समाहार

दुसूती

दो  सुतों का समूह

सप्ताह

सात दिनों का समूह

 

कर्मधारय समास - कर्मधारय समास का भी पूर्व पद गुण तथा उत्तर पदप्रधान होता है| इस समास के दोनों पद या तो विशेषण-विशेष्य होते हैं या उपमान-उपमेय होते हैं| वस्तुतः उपमान भी विशेषण का कार्य करता है और उपमेय विशेष्य का| विशेषण- विशेष्य वाले कर्मधारय समास का विग्रह करते समय विशेषण के बाद है जो पद जोड़कर विशेष्य को स्पष्ट किया जाता है जैसे- महात्मा= महान है जो आत्मा, नीलकंठ= नीला है जो कंठ आदि| उपमान उपमेय में उपमान वाले कर्मधारय समास का विग्रह उपमा अलंकार के रूप में किया जाता है जैसे- चंद्रमुख= चंद्रमा के समान मुख (उपमा)|

उपमान-उपमेय वाले कर्मधारय समासों के उदाहरण में पूर्वपद के स्थान पर उपमान भी आ सकता है और उपमेय भी| यदि उपमेय पहले आया है तो दूसरा पद उपमान होगा, जैसे- मृगलोचन= मृग (उपमान, पूर्वपद) के समान लोचन (उपमेय) तथा नरसिंह= सिंह (उपमान, उत्तरपद) के सामान नर (उपमेय, पूर्वपद)|

आइए कुछ और उदाहरण देखते हैं-

 

विशेषण विशेष्य संबंध

विशेषण

+

विशेष्य

=

समस्तपद

विग्रह

नील

+

कमल

=

नीलकमल

नीला है जो कमल

पित

+

अंबर

=

पीतांबर

पीला है जो अंबर (वस्त्र)

महा

+

आत्मा

=

महात्मा

महान है जो आत्मा

 

अन्य उदाहरण

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

नीलकंठ

नीला है जो कंठ

अंधकूप

अंधा है जो खूब

नीलगाय

नीली है जो गाय

कापुरुष

का (कायर) है जो पुरुष

काली मिर्च

काली है जो मिर्च

अंधविश्वास

अंधा है जो विश्वास


उपमेय उपमान संबंध

उपमेय

+

उपमान

=

समस्तपद

विग्रह

वचन

+

अमृत 

=

वचनामृत

अमृत रूपी वचन

कर

+

कमल

=

करकमल

कमल के समान कर (हाथ)

उपमान 

+

उपमेय

=

समस्तपद

विग्रह

घन

+

श्याम

=

घनश्याम

घन के समान श्याम

कमल

+

नयन

=

कमलनयन

कमल के समान

 

अन्य उदाहरण-

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

देहलता 

देह रूपी लता

चरणकमल

कमल के समान चरण

भुजदंड 

दंड के समान भुजा

विद्याधन

विद्या रूपी धन

चंद्रमुखी

चंद्रमा के समान मुख वाली (स्त्री)

क्रोधाग्नि

क्रोध रूपी अग्नि

 

6. तत्पुरुष समास-

तत्पुरुष समास में दोनों पद (पूर्वपद एवं उत्तरपद) परस्पर कारकीय संबंधों के आधार पर जुड़े होते हैं| ये कारकीय संबंध हो  सकते हैं- कर्म कारक, करण कारक, संप्रदान कारक, अपादान कारक, संबंध कारक तथा अधिकरण कारक के| जब समास का विग्रह किया जाता है तब इन कारकों के चिन्ह दोनों पदों के बीच लगा दिए जाते हैं| इस तरह तत्पुरुष समास के पदों के बीच कौन सा कारकीय संबंध है इस  आधार पर ‘तत्पुरुष समास’ के निम्नलिखित छह भेद माने जाते हैं-

  1. कर्म तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – को)
  2. करण तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – से, के द्वारा)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – के लिए
  4. अपादान तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – से, अलग होना)
  5. संबंध तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – का, के, की, या रा, रे, री)
  6. अधिकरण तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – में, पर, ऊपर आदि)

तत्पुरुष समास के भेद तथा उनके उदाहरण-

1. कर्म तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – को)-

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

ग्रामगत

ग्राम को गत

जेबकतरा

जेब को कतरने वाला

सुखप्राप्त

सुख को प्राप्त

स्वर्गगत

स्वर्ग को गत

स्वर्गप्राप्त

स्वर्ग को प्राप्त

गगनचुम्बी

गगन को चूमने वाला

2. करण तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – से, के द्वारा)

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

रेखांकित   

रेखा से अंकित

शोकाकुल

शोक से आकुल

तुलसीकृत

तुलसी द्वारा कृत

भयग्रस्त

भय  से ग्रस्त

गुणयुक्त

गुण से युक्त

कष्टसाध्य

कष्ट से साध्य


3. संप्रदान तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – के लिए)-

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

यज्ञशाला    

यज्ञ के लिए शाला

देशभक्ति 

देश के लिए भक्ति 

मालगोदाम

माल के लिए  गोदाम

डाकगाड़ी

डाक के लिए गाड़ी

आरामकुर्सी

आराम के लिए कुर्सी

जेबघड़ी

जेब के लिए घड़ी

 

4. अपादान तत्पुरुष {कारकीय चिह्न – से, (अलग होने के अर्थ में)}

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

कार्यमुक्त  

कार्य से मुक्त  

विद्याहीन

विद्या से हीन

नेत्रहीन

नेत्रों से हीन

सेवामुक्त

सेवा से मुक्त

धर्मभ्रष्ट

धर्म से भ्रष्ट

चरित्रहीन

चरित्र से हीन

 

5. संबंध तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – का, के, की, रा, रे, री)

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

जीवनसाथी

जीवन का साथी

घुड़दौड़

घोड़ों की दौड़

राष्ट्रपति

राष्ट्र का पति

गृहस्वामी

गृह  का स्वामी

कविगोष्ठी 

कवियों की गोष्ठी 

ग्रामपंचायत

ग्राम की पंचायत

 

6. अधिकरण तत्पुरुष (कारकीय चिह्न – में, पर, ऊपर)

समस्तपद

विग्रह

समस्तपद

विग्रह

पुरुषोत्तम

पुरुषों में उत्तम

आत्मविश्वास

आत्म (स्वयं) पर विश्वास

दानवीर

दान में वीर

लोकप्रिय

लोक में प्रिय

आपबीती 

आप (अपने) पर बीती

रणकौशल

रण में कौशल


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संस्कृत श्लोक

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